KGF Chapter 1 (2018) Hindi Dubbed Movie Download. Jeevanbhai.in

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KGF Full Movie Download in Hindi Filmywap KGF Hindi Dubbed Full Movie Download ,  Thriller Directed by Prashanth Neel Produced by Vijay Kiragandur Written by Dialogues:  Prashanth Neel, Chandramouli M., Vinay Shivangi Screenplay by Prashanth Neel Story by Prashanth Neel Starring Yash, Srinidhi Shetty Narrated by Anant Nag Music by Ravi Basrur, Tanishk Bagchi Cinematography Bhuvan Gowda Edited by Shrikanth Production company Hombale Films Distributed by Kannada:  KRG Studios,  Hindi:  Excel Entertainment & AA Films Tamil:  Vishal Film Factory,  Telugu:  Vaaraahi Chalana Chitram Malayalam:  Global United Media Release date KGF Full Movie Download in Hindi Filmyzilla 20 December 2018(United States, Canada) 21 December 2018 (India) KGF Chapter one could be a 2018 Indian Kannada-language amount action film written and directed by Prashanth physicist, and made by Vijay Kiragandur beneath the banner Hombale films. it’s the primary inst

फेसबुक डाटा लीक से उपजे ये सवाल, कर देंगे आपको परेशान



पिछले साल जब सुप्रीम कोर्ट ने व्यक्ति की निजता को उसका मौलिक अधिकार माना, तबसे हम निजी सूचनाओं को लेकर चौकन्ने हैं। परनाला सबसे पहले ‘आधार’ पर गिराया जिसके राजनीतिक संदर्भ ज्यादा थे। सामान्य व्यक्ति अब भी निजता के अधिकार के बारे में ज्यादा नहीं जानता। वह डाटा प्वाइंट बन गया है, जबकि उसे जागरूक नागरिक बनना है।
दूसरी तरफ हमारे वंचित नागरिक अपने अस्तित्व की रक्षा में ऐसे फंसे हैं कि ये बातें विलासिता की वस्तु लगती हैं। बहरहाल कैम्िब्रज एनालिटिका के विसल ब्लोअर क्रिस्टोफर ने ब्रिटिश संसदीय समिति को जो जानकारियां दी हैं, उनके भारतीय निहितार्थों पर विचार करना चाहिए। इस मामले के तीन अलग-अलग पहलू हैं, जिन्हें एक साथ देखने की कोशिश संशय पैदा कर रही है। पिछले कुछ समय से हम आधार को लेकर बहस कर रहे हैं।

आधार बुनियादी तौर पर एक पहचान संख्या है, जिसका इस्तेमाल नागरिक को राज्य की तरफ से मिलने वाली सुविधाएं पहुंचाने के लिए किया जाना था, पर अब दूसरी सेवाओं के लिए भी इस्तेमाल होने लगा है। इसमें दी गई सूचनाएं लीक हुईं या उनकी रक्षा का इंतजाम इतना मामूली था कि उन्हें लीक करके साबित किया गया कि जानकारियों पर डाका डाला जा रहा है। चूंकि व्यक्तिगत सूचनाओं का व्यावसायिक इस्तेमाल होता है, इसलिए आधार विवाद का विषय बना और अभी उसका मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने है। 

आधार के विरोधियों में से एक तबका मानता है कि राज्य को व्यक्ति के जीवन में घुसपैठ नहीं करनी चाहिए। बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में वैश्विक व्यवस्था के सामने अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद की चुनौती खड़ी हुई है। ऐसे में राज्य ने निगरानी की व्यवस्था को बढ़ाया है, जिसकी प्रतिक्रिया में निजता के अधिकार की मांग बढ़ी है। राज्य की जिम्मेदारी नागरिक को रक्षा प्रदान करने की भी है।
दोनों बातों को जोड़कर देखें तो कुछ विसंगतियां जन्म लेती हैं। उधर तकनीक ने राज-व्यवस्था के भीतर छिद्र खोज लिए हैं और विकीलीक्स जैसी संस्थाएं उभर कर आईं हैं। दो दशक में सोशल मीडिया के विस्तार के बाद इस मसले से जुड़े दो और पहलू उभरे हैं। सोशल मीडिया हमारी अभिरुचियों, प्रवृत्तियों और धारणाओं को भी तय कर रहा है। तकनीकी विस्तार इतना तेज है कि ज्यादातर हाथों में स्मार्टफोन आ गए हैं।
इसके मार्फत हम जानकारियां प्राप्त कर रहे हैं, साथ ही हमारी जानकारियां भी अनजाने में किसी के हाथों में पड़ रहीं हैं। इन जानकारियों का प्रयोग ही बहस का विषय है, जो इस वक्त खड़ी है। नागरिक के व्यक्तिगत जीवन की जानकारी में इच्छुक संस्थाएं कई तरह की हैं। कोई आपको फैशन की सामग्री बेचना चाहता है तो कोई किताब। किसी के पास इलेक्ट्रॉनिक उपकरण हैं तो कोई कॉस्मेटिक्स लेकर आया है।
मीडिया आपकी राय बना रहा है। राजनीति-शास्त्र अब केवल संवैधानिक-व्यवस्थाओं और राजनीतिक दर्शन के अध्ययन पर केंद्रित नहीं है। वह अब व्यक्ति के आचरण व्यवहार का अध्ययन करता है,  पर ज्यादा महत्वपूर्ण बनकर उभरी हैं वे एजेंसियां जो व्यक्ति के आचरण और व्यवहार को बना रही हैं। इस वक्त की बहस का केंद्रीय विषय हैं वे एजेंसियां जो हमारे मन-मस्तिष्क को संचालित करना चाहती हैं।

डाटा चोरी, डाटा बाजार और डटा में मिलावट वगैरह इसके सहायक उत्पाद हैं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण है राज-व्यवस्था को अपने शिकंजे में करने की कोशिश। वर्तमान बहस को इसी नजरिये से देखना चाहिए। जेम्स हार्डिंग की पुस्तक अल्फा डॉग्स में लेखक ने बताया कि अमेरिका में सत्तर के दशक से ऐसे व्यावसायिक समूह खड़े हो गए हैं जो लोकतंत्र का संचालन कर रहे हैं। अमेरिका में ही नहीं दुनिया के तमाम देशों में। संयोग से इस वक्त भी ज्यादातर संदर्भ अमेरिकी हैं। डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव के साथ तमाम विवाद भी जुड़े हैं। 
हमारे देश में भी लोकतंत्र का पहला लक्ष्य है चुनाव जीतना। चुनाव जिताने की विशेषज्ञता प्राप्त कंपनियां देश, काल और समाज के हिसाब से मुहावरे और नारे गढ़ती हैं। इनकी सहायक कंपनियां डाटा माइनिंग करती हैं, तमाम जानकारियां एकत्रित करती हैं। लोकतंत्र जनमत या पब्लिक ओपीनियन के सहारे चलता है। गोलबंदी पब्लिक ओपीनियन में ही सबसे ज्यादा नजर आती है। जैसे-जैसे लोकतांत्रिक प्रणाली का विकास हो रहा है, उसे स्वच्छ और पारदर्शी बनाने की कोशिशें एक तरफ हैं और सिस्टम को अपने कब्जे में करने की कोशिशें दूसरी तरफ हैं।

सामान्य पाठक के नजरिये से देखें तो हम समझ ही नहीं पा रहे हैं कि यह सब है क्या, इसलिए सबसे पहले यह समझना चाहिए कि हुआ क्या है और हम बातें क्या कर रहे हैं। कैम्िब्रज एनालिटिका ब्रिटिश फर्म है, जो डाटा माइनिंग, डाटा ब्रोकरेज और डाटा एनालिसिस के आधार पर राजनीतिक सलाह देने और चुनाव प्रक्रियाओं के कारोबार में हिस्सा लेती है।
यह कंपनी 2013 में एक और कंपनी एससीएल (स्ट्रैटेजिक कम्युनिकेशंस लैबोरेटरीज़) में से निकली थी। चुनाव जीतने में दिलचस्पी राजनीतिक दलों से ज्यादा कारोबारियों और तमाम तरह के हित समूहों की होती है। भारतीय संदर्भों में हम इन बातों को अब देख-सुन रहे हैं, इसलिए विस्मय हो रहा है। फेसबुक डाटा लीक मामला सामने आने के बाद ब्रिटिश फर्म कैम्ब्रिज एनालिटिका के पूर्व सहयोगी क्रिस्टोफर वायली ने ब्रिटिश संसद की एक समिति के सामने जो बातें बताईं हैं, उनसे कई तरह के निष्कर्ष निकल रहे हैं।

ज्यादातर मामले अमेरिकी राजनीतिक समूहों और अमेरिकी चुनाव से जुड़ी गतिविधियों से संबद्ध हैं, पर अब इस संस्था की भारतीय गतिविधियों पर से भी पर्दा उठ रहा है।वायली ने बताया कि इससे जुड़ी भारतीय फर्म ने 2012 में उत्तर प्रदेश में एक राष्ट्रीय पार्टी के लिए जातिगत जनगणना की थी। यह काम ऐसे वोटरों की पहचान करने के लिए हुआ था, जिन्हें अपने पक्ष में किया जा सकता हो।
भारत में जेहादियों की भर्ती से जुड़ी रिसर्च का काम भी किया गया। दिल्ली और छत्तीसगढ़ के चुनावों में कंपनी ने स्टडी की। यह सब हाल में ही नहीं हुआ है। सन 2009 के लोकसभा चुनाव में कई उम्मीदवारों के लिए काम किया। इसके अलावा साल 2003 से 2012 के बीच हुए चुनावों में कैम्िब्रज एनालिटिका के उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेशराजस्थान और बिहार में कई क्लाइंट थे।
वायली के अनुसार वर्ष 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में काम किया था। उनका दावा है कि देश के छह हजार जिलों और सात लाख गांवों की जानकारी उनके पास है। जानकारियां हमेशा उपयोगी होंगी। महत्वपूर्ण यह है कि उनका इस्तेमाल कौन और क्यों कर रहा है। 

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